शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव अपने भक्तों के कल्याण के लिए पूरी धरती पर जगह-जगह भ्रमण करते रहे हैं. अपने भक्तों की उपासना से अभिभोर होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया और अपने भक्तों के अनुरोध पर अपने अंश रूपी शिवलिंग के रूप में वहां सदा के लिए विराजमान हो गए.
शिवलिंग के रूप में भगवान शिव जिन-जिन स्थानों पर विराजमान हुए, उन्हें आज प्रसिद्ध तीर्थस्थलों के रूप में महत्व दिया जाता है. वैसे तो धरती पर असंख्य शिवलिंग स्थापित हैं लेकिन इनमें 12 शिवलिगों को ज्योतिर्लिंग का विशेष दर्जा प्राप्त है.
इन्हीं ज्योतिर्लिंगों में द्वादशवें ज्योतिर्लिंग का नाम ‘घुश्मेश्वर’ है. इन्हें ‘घृष्णेश्वर’ और ‘घुसृणेश्वर’ के नाम से भी जाना जाता है.
घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के शिवाड गांव में स्थित है ! शिवमहापुराण में घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग का वर्णन है. ज्योतिर्लिंग ‘घुश्मेश’ के समीप ही एक सरोवर भी है. जिसे शिवालय के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि जो भी इस सरोवर का दर्शन करता है उसकी सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है.
शिवपुराण में भी इसका वर्णन निम्न श्लोक में आता है –
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्री शैले मल्लिकार्जुनम | उज्जयिन्यां महाकालंओंकारं ममलेश्वरम || केदारं हिमवत्प्रष्ठे डाकिन्यां भीमशंकरम | वाराणस्यां च विश्वेशं त्रयम्बकं गोतमी तटे || वैधनाथं चितभूमौ नागेशं दारुकावने | सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं तु शिवालये ||
(शिव पुराण कोटि रूद्र संहिता 32-33)
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