भगवान शिव के बहारवें (द्धादशवें) ज्योतिर्लिंग के स्थान के बारे में पिछले वर्षो मेँ कई दावें व आपत्तियां उठाई गई। लेकिन शिवपुराण के प्रमाण से ये साबित हो गया है की यह द्धादशवां ज्योतिर्लिंग शिवालय,शिवाड़ जिला सवाई माधोपुर (राजस्थान) मेँ ही स्थित है। शिवपुराण के अनुसार बाहरवां (द्धादशवां) ज्योतिर्लिंग शिवालय मेँ है।
द्धादशवे ज्योतिर्लिंग श्री घुश्मेश्वर के ग्राम शिवाड़ (शिवालय) जिला-सवाईमाधोपुर (राजस्थान) में ही विराजमान होने का प्रमाण :-
शिवालय नामक स्थान में प्रकट :-
शिवपुराण कोटि रूद्र संहिता के अध्याय 32 से 33 के अनुसार घुश्मेश्वर द्धादशवां ज्योतिर्लिंग शिवालय नामक स्थान पर होना चाहिये।
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्री शैले मल्लिकार्जुनम |
उज्जयिन्यां महाकालंओंकारं ममलेश्वरम ||
केदारं हिमवत्प्रष्ठे डाकिन्यां भीमशंकरम |
वाराणस्यां च विश्वेशं त्रयम्बकं गोतमी तटे ||
वैधनाथं चितभूमौ नागेशं दारुकावने |
सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं तु शिवालये ||
पुरातनकाल में इस स्थान का नाम शिवालय था जो अपभ्रंष होता हुआ, शिवाल से शिवाड़ नाम से जाना जाता है।
दक्षिण में देवगिरी पर्वत :-
शिवपुराण कोटि रूद्र संहिता अध्याय 33 के अनुसार-
घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के दक्षिण में देवत्व गुणों वाला देवगिरी पर्वत है।
दक्षिणस्यां दिशि श्रैष्ठो गिरिर्देवेति संज्ञकः महाशोभाविन्तो नित्यं राजतेऽदभुत दर्शन:
तस्यैव निकटः ऐको भारद्धाज कुलोदभव: सुधर्मा नाम विप्रशच न्यवसद् ब्रह्मवित्तमः ।।
शिवालय (शिवाड़) स्थित ज्योतिर्लिंग मंदिर के दक्षिण में भी तीन श्रृंगों वाला धवल पाषाणों का प्राचीन पर्वत है जिसे देवगिरी नाम से जाना जाता है।
यह महाशिवरात्रि पर एक पल के लिये स्वर्णमय हो जाता है जिसकी पुष्टि बणजारे की कथा में होती है जिसने देवगिरी से मिले स्वर्ण प्रसाद से ज्योतिर्लिंग
की प्राचीरें एवं ऋणमुक्तेष्वर मंदिर का निर्माण प्राचीनकाल में करवाया।
उत्तर में शिवालय सरोवर:-
शिवपुराण कोटि रूद्र संहिता अध्याय 33 के अनुसार घुश्मेश्वर प्रादुर्भाव कथा में भगवान शिव ने घुश्मा को निम्न वरदान दिया।
तदोवाच शिवस्तत्र सुप्रसन्नो महेश्वर: स्थास्येत्र तव नाम्नाहं घुश्मेशाख्यः सुखप्रदः।44।
घुश्मेशाख्यं सुप्रसिद्धं में जायतां शुभ: इदं सरस्तु लिंगानामालयं जयतां सदा।45।
तस्माच्छिवालयं नाम प्रसिद्धं भुवनत्रये सर्वकामप्रदं हयेत दर्शनात्स्यात्सदासरः।46।
तब शिव ने प्रसन्न होकर कहा है घुश्मे मैं तुम्हारे नाम से घुश्मेश्वर कहलाता हुआ सदा यहां निवास करूंगा और सबके लिये सुखदायक होऊंगा, मेरा शुभ ज्योतिर्लिंग घुश्मेश्वर नाम से प्रसिद्ध हो।
यह सरोवर शिवलिंगों का आलय हो जाये तथा उसकी तीनों लोकों में शिवालय के नाम से प्रसिद्धि हो।
यह सरोवर सदा दर्शन मात्र से ही अभीष्ठों का फल देने वाला हो।
1837 ईं (वि.सं.1895) में ग्राम शिवाड़ स्थित सरोवर की खुदाई करवाने पर दो हजार शिवलिंग मिले जो इसके शिवलिंगों का आलय होने की पुष्टि करते हैं
तथा इसके शिवालय नाम को सार्थक करते है। मंदिर के परम्परागत पाराशर ब्राह्मण पुजारियों का गोत्र शिवालया है।
धर्माचार्यों की सम्मति:-
कई विद्वान,धर्माचार्य,पुरातत्वविद्,शोधार्थी इस स्थान की यात्रा कर चुके है तथा इसके वास्तविक घुश्मेश्वर द्धादशवां ज्योतिर्लिंग होने की पुष्टि कर चुके हैं।
कल्याण से(श्री कल्याण 55, 4 अप्रेल 81 गीता प्रेस गोरखपुर) द्धारा पं. पुरूषोत्तम शर्मा का घुश्मेश्वर द्धादशवां ज्योतिर्लिंग शिवाड़ पर आधारित लेख छापते हुऐ नीचे टिप्पणी दी है।
”इस लेख से दो देवगिरी पर्वत सिद्ध होते है। कल्याण के तीर्थांक एवं शिवपुराणांक में भी घुश्मेश्वर सम्बन्धी चरण प्रकाशित हुऐ है, संभव है भ्रांतिवश लोगों द्धारा कर्नाटक स्थित प्रसिद्ध देवगिरी के समीपस्थ पहले घुश्मेश्वर की कल्पना की हो।
यह शिवाडस्थ घुश्मेश्वर सत्य दिखता है। इस पर शंकराचार्य, आचार्यों तथा महात्माओं ने अपनी सम्मतियां दी है अतः यह लेख यहां भी प्रकाशित किया जा रहा है।
श्री विश्वनाथ पाटिल, संपादक कथालोक, सुभाष मार्ग, दिल्ली-6 से घुश्मेश्वर द्धादशवां ज्योतिर्लिंग के बाबत पत्र व्यवहार करने पर उन्होने घृष्णेश्वर-वेरूल की कथा भेजी जिसमें घृष्णा नामक रानी के पुत्र को माणकावति नामक सौत द्धारा
अपहरण कर पर्वतों के पीछे झरने के पास जंगली हिंसक जानवरों का ग्रास बनने हेतु छिपाने एवं घृष्णा की भक्ति से प्रसन्न भगवान शंकर द्धारा रानी के पुत्र का पता बताने एवं आशीर्वाद देने की घटना का वर्णन है। उपरोक्त कथा शिवपुराण
कोटिरूद्र संहिता के अध्याय 33 में वर्णित घुश्मा की कथा से साम्य नही रखती हैं घुश्मेश्वर द्धादशवां ज्योतिर्लिंग के शिवाड में ही स्थित होने के प्रमाणों से संतुष्ट होकर उन्होने अपनी पत्रिका के दिसम्बर 1974 के अंत में पृष्ठ 65 से 67 तक
में ज्ञातव्य शीर्षक से तथ्य परक लेख प्रकाशित किया।
शिवालय क्षेत्र के चार द्धार:-
प्राचीन ग्रंथ श्री घुश्मेश्वर महात्म्य के अनुसार प्राचीन काल में ज्योतिर्लिंग क्षेत्र शिवालय में एक योजन विस्तार में चारो दिशाओ मे चार द्धार थे, जिनका नाम पूर्व मे सर्वसर्प द्धार, पश्चिम मे नाट्यशाला द्धार तथा उत्तर में वृषभ द्धार व
दक्षिण में ईश्वर द्धार था तथा पश्चिमोतर में सुरसरि सरोवर था।
दूरतों योजनेकञ्च तावता विस्तरेण वै, द्वारणी सन्ति चत्वारी देवस्य परितोधुना।8।
पूर्वस्य द्वारस्य सर्वा वै सर्पमपि वदन्ति हि, अस्मिनद्वारेवै सर्पा: श्रृंगारं भूषयन्ति च।9।
रक्षको भैरवश्चास्ते प्रत्यह दर्शको विभो:,चोतरे वृषभों द्वार यत्र नंदी निवासते।10।
पश्चिमे द्वारक नाटयं नाट्यशालाख्य द्वारकं, तेsपि नृत्यन्ति वै गणा:श्री घुश्मेश्वरसन्निधौ ।11।
ईश्वरे द्वारके याम्ये तत्र लिंगश्च ईश्वर:, पश्चिमोतर देवस्य सुरसराख्य सागर:।12।
वर्तमान में ग्राम शिवाड़ स्थित ज्योतिर्लिंग क्षेत्र के चारो ओर उपरोक्त चारो द्धार के प्रतीक चार गाँव है जो सारसोप (सर्व सर्पद्धार), नटवाड़ा (नाट्यशाला द्धार), बहड़ (/बैल द्धार), ईसरदा (ईश्वर द्धार) के नाम से जाने जाते है।
पश्चिमोतर में सिरस गाँव सुरसरि सरोवर के स्थान पर बसा हुआ है।
वाशिष्ठी नदी के किनारे बिल्वपत्रो का वन :-
घुश्मेश्वर महात्म्य ग्रंथ के अनुसार ज्योतिर्लिंग के शिवालय क्षेत्र के पास वाशिष्ठी नदी बहती है। जिसके किनारे मंदारवन (आकड़ों का वन) तथा बिल्वपत्रो के वन थे, जिनसे घुश्मेश्वर की नित्य पूजा की जाती थी।
वाशिष्ठी शुभदा गंगा आप्लावयति सांप्रतम, कूले सन्ति हि पुष्पाणि मंदारस्य शुभानि च।13।
पुष्येरेव महादेव पूज्यन्ति सदा शिवम, बिल्वानि यानि चौघाने सम्भूतानि महान्ति च।14।।
ग्राम शिवाड़ स्थित ज्योतिर्लिंग क्षेत्र के पास बनास नदी बहती है, जो पूर्व काल की वाशिष्ठी नदी ही है। तथा इसके किनारे बिल्वपत्रो का वन आज भी विरल रूप में स्थित है। मंदरवन के स्थान पर मंडावर ग्राम है जहाँ आंकड़े (मंदार) बहुतायत से उत्पन होते है।
दुर्लभ शिवलिंग :-घुश्मेश्वर महात्म्य ग्रंथ के अनुसार ज्योतिर्लिंग का शिवलिंग अव्यक्त (अदृश्य) रहता है।
शिवालये याम्ये तीरे सर्वदेव तप:क्षितौं, ज्योतिरूपो मुने साक्षात घुश्मेश्वर विराजते॥7॥
अव्यत्तं परम लिंग प्रकाशते हाहर्निशम दीपशिखा कृतिनश्च योगिभिरेव दृश्यते।18।
शिवाड़ स्थित घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग अधिकांश समय जलमग्न रहने के कारण अदृश्य ही रहता है।
स्वयंभू शिवलिंग :-
ज्योतिर्लिंग स्वयंभू है अतः ये किसी शिल्पी द्धारा तैयार नहीं होने चाहिये। शिवाड़ स्थित ज्योतिर्लिंग किसी शिल्पी की रचना नहीं है, यह स्वयं उत्पन है अतः स्वयंभू है।
प्रमाण pdf फाइल में (घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन Pdf में )